दक्षिण भारतीय अभिनेता-निर्माता एवं जूरी अध्यक्ष प्रकाश राज ने हाल ही में भारत के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों पर तीखा प्रहार किया है। उन्होंने कहा है कि यह पुरस्कार “समझौते” के अंतर्गत हो रहे हैं और उन्हें भरोसा नहीं कि यह वास्तव में कला-प्रदर्शन को न्याय दे रहे हैं।
उनका खुला बयान था: “मैं यह कहने में हिचक नहीं माँगता कि नेशनल फिल्म अवार्ड्स समझौते के दायरे में आ गए हैं… जब फाइल-डिब्बों को पुरस्कार मिल रहे हैं… तो ऐसे जूरी और राष्ट्रीय सरकार का होना मम्मुक्का के लायक नहीं है।”
यह टिप्पणी विशेष रूप से उस संदर्भ में आई है जब मलयालम सिनेमा के दिग्गज अभिनेता Mammootty को पिछले वर्षों में राष्ट्रीय स्तर पर अपेक्षित सम्मान नहीं मिला। प्रकाश राज ने अपने जूरी अध्यक्ष के अनुभव का हवाला देते हुए कहा कि केरल राज्य फिल्म पुरस्कारों में उन्हें “एक बाहरी, अनुभवी व्यक्ति” समझ कर बुलाया गया था और उस प्रक्रिया को स्वतंत्रता से चलने दिया गया था। लेकिन राष्ट्रीय पुरस्कारों में ऐसा नहीं दिख रहा।
उनका यह आरोप चुनौती-पूर्ण सवाल उठाता है: जब कला-उद्योग में सबसे बड़े पुरस्कारों की प्रक्रिया ही विवादास्पद है, तो कलाकारों, समीक्षकों और जनता का उस पर भरोसा कैसे बना रहेगा? उन्होंने यह भी कहा कि बच्चों-किशोरों की फिल्मों का स्तर गिरा है और उन्हें सही दृष्टिकोण से नहीं बनाया जा रहा—ऐसा भी उन्होंने राज्य-पुरस्कार के अनुभव के संदर्भ में बताया।
यह बयान बॉलीवुड-दक्षिण सिनेमा की मान्यता, पुरस्कार प्रणाली की पारदर्शिता और न्यायसंगत सम्मान देने की प्रक्रिया पर एक सार्वजनिक चर्चा को फिर से जीवित कर रहा है।


