दीपावली के त्योहार के लिए मिट्टी के बर्तन व दीये बनाने वाले कुम्हार झेल रहे हैं आधुनिकता की मार

राहुल कुमार

माटी कहे कुम्हार से अब ये धंधा छोड़

चैनपु (गुमला) : आधुनिकता के दौर पर पुरानी परंपराएं भी पीछे छूटने लगी है कभी दिवाली पर मिट्टी के दिए से रोशन होने वाले घर अब चीनी झालरों व बल्ब से सजने लगा है। कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि जिस मिट्टी के दिए यानी दीपक के बगैर रोशनी के पर्व दीपावली की कल्पना नहीं की जा सकती बदलते वक्त में उसी के निर्माता यानी कुम्हार के घर में छाया अंधेरा साल दर साल बढ़ता जा रहा है। बीते एक डेढ़ दशक के दौरान ज्यो-ज्यो चीन से आयात बिजली के बल्ब और झालरों का बाजार बढ़ा है त्यों-त्यों दीपक की लव से होने वाली रोशनी मंद पड़ती गई है। चाहे वैज्ञानिक युग की मार कहे या फिर आधुनिक युग की चकाचौंध बीते 10-15 सालों के दौरान कुम्हारों की चाक की धार जितनी कम हुई है कुम्हार की दिक्कतें उतनी ही बड़ी है। लिहाजा कुम्हारों की नई पीढ़ी ने अपने पुश्तैनी कारोबार से करीब करीब दूर हटने का मन बना लिया है।

चैनपुर व आसपास के क्षेत्र में अब गिने चुने कुम्हार ही बचे हैं जिनकी चाक की रफ्तार भी अब धीरे-धीरे थमने लगी है जो आज भी मिट्टी का आकार बदलकर अपने परिवार की जिंदगी बदलने के जद्दोजहद में लगे है। अपने पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े कुम्हार समुदाय के लोगों ने बताया कि अब मिट्टी से बने बर्तनों के डिमांड मार्केट में ना के बराबर है। दीपावली में दिए की मांग भी पहले की अपेक्षा काफी घट गई है। जिसके कारण कुम्हारों में उनके पूर्वजों के धंधा में ज्यादा लगाव नहीं रह गया है। कुछ कुम्हार भले हैं दीपावली की रात को जगमग करने के लिए मिट्टी के दीप बनाते जरूर है इनका कहना है कि दिनों दिन सामानों की कीमत बढ़ती जा रही है लेकिन उसके अनुपात में ग्राहकों के सामानों की कीमत नहीं ले पाते हैं इसके कारण मुनाफा कम होता जा रहा है यही नहीं यदि बनाए गए सामान नहीं बिक्री ना हो तो घर से घटा भी होता है और अगले साल का इंतजार करना पड़ता है इस कारण अब चाक पर उनकी उंगलियां दीप नहीं बन पा रही है।

इन दिनों बिजली और बैटरी से रोशन होने वाले दियों से बाजार पटा पड़ा है भले ही बिजली युक्त दिए झालरों बल्ब से अंधेरा दूर और घर रोशन होता हो लेकिन दिए हो बाती के धंधे से जुड़े लोगों का घर अंधेरे में डूबता जा रहा है। इस साल देशभर में 12 नवंबर को दीपावली का पर्व मनाया जाएगा कुछ सालों पहले तक दीपावली पर मिट्टी से बने दिए जलाने का चलन था दिए और उसमें भरे तेल जलती हुई बत्ती की लौ देखते ही बनती थी और लोग दीपावली पर्व को रोशन करते थे। लेकिन बदलते समय के साथ-साथ दिए की जगह चीन निर्मित छोटे झालरों ने ले ली है रोशनी के चकाचौंध और कम खर्च को देखते हुए लोग इस आधुनिक बल्बो झालरों का ही प्रयोग अधिक करने लगे हैं। इससे मिट्टी के दीए बनाने वाले कुम्हारों के रोजी-रोटी खतरे में पड़ गई है।

मिट्टी के दिए घी एवं करंज तेल की कीमत में वृद्धि को देखते हुए दिए की मांग धीरे-धीरे कम होती जा रही है। इससे इन कुम्हार को आर्थिक नुकसान उठाने के अलावा बेरोजगारी का दंश भी झेलना पड़ रहा है। दिवाली पर्व पर चैनपुर क्षेत्र के कई कुम्हार मिट्टी के दिए कलश कई मिट्टी के बर्तन बनाकर अपना जीवन यापन करते थे। मगर क्षेत्र के कुम्हारों का कहना है कि अब इस धंधे में रहकर अपने परिवार का पालन पोषण संभव नहीं है।

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