झारखंड हाई कोर्ट ने नौकरी की उम्मीद दिखाकर युवाओं को फर्जी नक्सली बनवाने और उन्हें सरेंडर करवाने के आरोप पर राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
कोर्ट की बेंच — चीफ जस्टिस तौलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर — ने मामले की गंभीरता को देखते हुए निर्देश दिया है कि सरकार यह स्पष्ट करे कि इन युवकों को दी गई “प्रशिक्षण” या “त्याग प्रक्रिया” कितनी कानूनी वैध थी, और इस पर अब तक की कार्रवाई की स्थिति क्या है।
अदालत ने 20 नवंबर को अगली सुनवाई निर्धारित की है और कहा है कि सरकार को इस विषय पर एक प्रगति रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
यह मामला उस याचिका से जुड़ा है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि वर्ष 2014 में राज्य सरकार आदिवासी युवकों को एक निर्देशन-संस्था तथा पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत से नक्सली बताकर सरेंडर करवाने की योजना बना रही थी, और इसके लिए युवाओं को सरकारी नौकरी का लालच दिया गया था।
हाई कोर्ट ने सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा है कि ऐसी कार्रवाई में कानूनी आधार क्या था और यदि कोई अनियमितता पाई जाए, तो तत्काल सुधारात्मक कदम उठाए जाएँ।


