बिरसा भूमि लाइव
रांची : निजी क्षेत्र की कंपनी-प्रतिष्ठानों में 75 फीसदी स्थानीय को बहाल करने संबंधी लाये गये कानून और उसकी प्रक्रिया की जटिलता से व्यापारियों के समक्ष होनेवाली कठिनाईयों पर चिंता जताते हुए जेसीपीडीए ने मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन और श्रम मंत्री से इस कानून के प्रावधान को सरल बनाने की मांग की। कहा गया कि नया कानून व्यापारियों पर एक अतिरिक्त कंपलायंस का बोझ है जिससे बेवजह परेशानी बढेगी। जेसीपीडीए के अध्यक्ष संजय अखौरी ने कहा कि जहां भी 10-10 से अधिक लोग काम करते हैं उन्हें इस कानून के दायरे में रखा गया है।
विभागीय पोर्टल पर कंपनियों को अपने कर्मियों का स्थानीय प्रमाणपत्र समेत पूरा ब्यौरा देना है। जबकि वास्तविकता है कि अधिकांशतः कर्मचारियों के पास आवासीय प्रमाण पत्र नहीं है। अंचल कार्यालयों में भी प्रमाण पत्र बनाने में कठिनाईयां हो रही हैं। सरकार के नये कानून से एक ओर जहां कामगारों के बीच उनकी आजीविका प्रभावित होने की आशंका बनी हुई है वहीं दूसरी ओर कानून का अनुपालन नहीं करने पर व्यापारी भी जुर्माने के डर से आशंकित हैं। यह देखें तो अधिकांशतः अकुशल मजदूर ही कंपनियों, प्रतिष्ठान और दुकान में काम करते हैं, उन्हें पोर्टल से जोड़ना और बार-बार अपडेट करना संभव नहीं है।
जेसीपीडीए के अध्यक्ष संजय अखौरी ने कहा कि हम सरकार की नीति के खिलाफ नहीं हैं लेकिन इसके लागू करने के तरीके प्रैक्टिकल नहीं हैं। कानून में पूरी तरह स्पष्टता का अभाव बना हुआ है जिसकी समीक्षा जरूरी है। स्थानीयता को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। छोटे-छोटे व्यापारियों और उद्योगों पर बेवजह बोझ डाला गया है। हर तीन महीने में रिपोर्ट जमा करना भी एक अतिरिक्त कंप्लायंस का बोझ है जिससे छोटे छोटे व्यापार में लगे लोग कानूनी प्रावधान को लागू करने में असमर्थ होंगे।
जेसीपीडीए ने कहा कि एक व्यापारी पर जीएसटी के अलावा स्थानीय स्तर पर कई तरह के लाइसेंस और कंपलायंस का भार है, ऐसे में एक अतिरिक्त कंपलायंस को डालकर उसके अनुपालन के लिए बाध्य करना न्यायसंगत नहीं है। व्यापारी पूरा दिन यदि कंपालायंस में ही व्यस्त रहेंगे तब व्यापार कैसे संभव होगा ? यह ईओडीबी की अवधारणा के विपरीत है, जिसपर राज्य सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए। साथ ही उन्होंने राज्य में सिंगल विंडो सिस्टम को भी प्रभावी रूप से कार्यरत करने की बात कही।