बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) मामले की सुनवाई के दौरान गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में तीखी नोकझोंक देखने को मिली। चुनाव आयोग (EC) के वकील ने अदालत में कहा, “यह लेक्चर रूम नहीं है”, जिससे कोर्ट में कुछ देर के लिए माहौल गरम हो गया।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी
भावी मुख्य न्यायाधीश (CJI) जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि हर व्यक्ति को अपील करने का पूरा अवसर मिलना चाहिए। कोर्ट ने निर्वाचन आयोग से अपेक्षा जताई कि जिन मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं, उन्हें स्पष्ट रूप से बताया जाए कि उनका नाम क्यों काटा गया। एक पंक्ति के अस्पष्ट आदेश से नागरिक अधिकारों पर असर पड़ता है।
योगेंद्र यादव की आपत्ति
जनता दल (यू) के पूर्व नेता और सामाजिक कार्यकर्ता योगेंद्र यादव ने अदालत को बताया कि बिहार में किए गए SIR के दौरान करीब 20% फॉर्म बूथ-लेवल अधिकारियों (BLO) ने खुद भरे हैं। उनका तर्क था कि यदि ऐसा नहीं किया जाता, तो मतदाता सूची से वंचित लोगों की संख्या 65 लाख नहीं, बल्कि करीब 2 करोड़ तक होती।
अदालत के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (BSLSA) को निर्देश दिया कि वे जिला स्तर पर उन 3.66 लाख मतदाताओं की मदद करें जिनके नाम अंतिम सूची से हटा दिए गए हैं, ताकि वे निर्वाचन आयोग में अपील कर सकें।
EC की ओर से तीखा जवाब
चुनाव आयोग के वकील ने अदालत में कहा कि आयोग ने कानून के तहत ही काम किया है और इस मामले को बेवजह राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। जब अदालत ने तर्कों पर विस्तार से चर्चा शुरू की, तो उन्होंने कहा, “माय लॉर्ड, यह कोई लेक्चर रूम नहीं है,” जिस पर कोर्ट ने संयम बरतते हुए कार्यवाही आगे बढ़ाई।


