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Wednesday, March 29, 2023

कुपोषण के खिलाफ जिले में छिड़ी है जंग, कुपोषण मुक्त जिला बनाने की हो रही है पहल

बिरसा भूमि लाइव

पिछले तीन वर्षों से लगातार पोषण माह अभियान में गुमला जिला रहा प्रथम स्थान पर

गुमला: बुधवार को देर शाम तक चले रांची में जिलावार समाज कल्याण विभाग की समीक्षात्मक बैठक में सितंबर माह में चलाए गए पोषण अभियान के तहत बेहतरीन कार्य करने वाले जिलों को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया, जिसमें गुमला जिला ने प्रथम स्थान हासिल किया। जिसके लिए जिला समाज कल्याण पदाधिकारी को प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया।

बताते चले कि जिले ने पिछले 3 वर्षों से लगातार पोषण माह में बेहतर कार्य करने हेतु अपने प्रथम स्थान को थामे रखा है।जिला समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित सितंबर माह में चलाए गए पोषण माह में गुमला जिले ने पुनः प्रथम स्थान हासिल किया। प्रति वर्ष पूरे झारखंड में पोषण माह अभियान चलाया जाता है जिसका उद्देश्य झारखंड को कुपोषण मुक्त बनाना है। जिसके तहत प्रत्येक वर्ष पोषण कैलेंडर तैयार किया जाता है, एवं सभी जिले द्वारा प्रति दिन किए जाने वाले कार्यों को पोषण अभियान के वेबसाइट पर अपलोड किया जाता है जिसके आधार पर बेहतरीन कार्य करने वाले जिले को प्रशस्ति पत्र दिया जाता है।

उपायुक्त ने जिला समाज कल्याण विभाग की टीम को दी बधाई : पोषण अभियान के तहत जिला समाज कल्याण विभाग को पूरी टीम के प्रयास से गुमला जिले को प्रथम स्थान से नवाजा गया जो की जिले के लिए एक उपलब्धि है। जिसके लिए उपायुक्त सुशांत गौरव ने जिला समाज कल्याण पदाधिकारी एवं जिला समाज कल्याण विभाग के पूरी टीम को बधाई दी। उन्होंने कहा कि अच्छी टीम वर्क और जन जागरूकता ही समाज को कुपोषण मुक्त बना सकती है। कुपोषण लोगों के जीवन में एक जोंक की तरह होती है जो लोगों के शरीर को दुर्बल बनाती है और जल्द ही शरीर को थका देती है जिसके परिणाम स्वरूप लोग अपने काम को पूरी क्षमता के साथ करने में असमर्थ रहते हैं। जो कहीं न कहीं लोगों के आर्थिक स्थिति में प्रभाव डालने के साथ साथ पूरे जिले को दुर्बल बनाने का कार्य करती है। समाज को कुपोषण मुक्त करना एक अच्छे समाज के निर्माण में महत्वपूर्ण कदम है जिसके लिए जिला प्रशासन द्वारा विभिन्न तरीकों से लगातार प्रयास किया जा रहा है।

कुपोषण के खिलाफ जिले में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहें हैं। : जिला समाज कल्याण पदाधिकारी सीता पुष्पा ने बताया कि उपायुक्त सुशांत गौरव के नेतृत्व में जिले को कुपोषण मुक्त बनाने हेतु कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहें है जिस कारण आज गुमला जिला कुपोषित जिला बनने की दिशा में अग्रेतर है। जिले में एनीमिया मुक्त अभियान, समर अभियान, पोषण माह, कुपोषण मुक्त अभियान आदि जैसे विभिन्न अभियानों के माध्यम से कुपोषण के खिलाफ कई पहल किए जा रहें है। डीएसडबल्यूओ ने बताया कि जन भागीदारी एवं अधिक संख्या में लोगों को जागरूक करना इन सभी अभियान में सबसे महत्वपूर्ण रहा है। इन सभी अभियानों का एक मात्र उद्देश्य कुपोषण से जिले को मुक्त करना है।

इस दौरान जिले भर के कुपोषित ( मैम) एवं अति कुपोषित ( सैम) बच्चों को चिन्हित किया गया जिसके लिए आंगनवाड़ी सहिया, एएनएम आदि द्वारा आंगनवाड़ी केंद्रों, विद्यालयों तथा घर घर जाकर युद्ध स्तर पर अभियान चलाते हुए बच्चों के लंबाई / वजन /हिमोग्लोबिन की माप करते हुए चिन्हित सैम बच्चों को एमटीसी सेंटर में भर्ती किया गया जहां बच्चों की देखरेख की गई। जिसमें मुख्य रूप से बच्चों को दवाई के अलावा उन्हें पोषण आहार दिया गया। जिले के 497 अति कुपोषित बच्चों में से अब तक 427 पूर्ण रूप से कुपोषण मुक्त हो चुके हैं ।वहीं मैम बच्चों के परिवार के सदस्यों को पोषण आहार के विषय में जानकारी दी गई। सभी सैम मैम बच्चों के लिए जिला प्रशासन की ओर से नई पहल करते हुए वृद्धि निगरानी चार्ट बनाया गया जिसके माध्यम से बच्चों की प्रति माह में हुए ग्रोथ पर नजर रखा गया।

इसके अलावा उपायुक्त के निर्देशानुसार सभी सैम मैम बच्चों के परिवार जनों को विभिन्न सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से प्राथमिकता देते हुए जोड़ा गया एवं उन सभी योजना से लाभान्वित कर उनके परिवार के आर्थिक स्थिति में सहायता की गई। इसके अलावा उपायुक्त के निर्देशानुसार प्रत्येक सप्ताह सभी पंचायतों में VHSND ( Vllage Health, Sanitation And Nutrition Day) डे का आयोजन करते हुए लोगों को पोषण आहार के संबंध में लगातार जागरूक भी किया जा रहा है।

जिले में हुई 52 प्रकार के साग की खोज : जिला समाज कल्याण विभाग द्वारा एक पहल करते हुए जिले में उत्पादित होने वाले 52 प्रकार के पौष्टिक साग की खोज की गई। डीएसडब्ल्यूओ ने बताया कि स्थानीय क्षेत्र में उगने वाले साग सब्जी का सेवन कुपोषण के खिलाफ एक बेहतर भूमिका निभाती है। जिले में 52 प्रकार में साग उगते हैं जिसके सेवन से सभी कुपोषण मुक्त हो सकते हैं जिसमें कोई अधिक खर्च भी नहीं है। उन्होंने ये भी बताया कि मौसमी फलों एवं सब्जियों का भरपूर सेवन ही बच्चों को कुपोषण से लड़ने के लिए तैयार करता है वहीं हाथों को धोना एवं साफ सफाई का ध्यान रखना भी कई गंभीर बीमारियों से बचने का कार्य करता है। साथ ही उन्होंने मोटे अनाज का भरपूर सेवन करने पर भी जोर दिया।

रागी लड्डू जिले की महत्वपूर्ण पहल : उपायुक्त के निर्देशानुसार जिले में मोटे अनाज के उत्पादन को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है।जिसके तहत इस वर्ष रागी का उत्पादन जिले में सबसे अधिक किया गया। कैल्शियम और आयरन से भरपूर रागी बच्चों के वृद्धि और विकास के लिए बहुत उपयोगी है। हीमोग्लीबीन के स्तर को बढ़ाने के लिए एनिमिया से पीड़ित लोगों के लिए इसकी सिफारिश की जाती है।

जिला प्रशासन द्वारा जोहार रागी कार्यक्रम के माध्यम से जिले के विभिन्न क्षेत्रों में बहुतायत से उपजने वाले रागी के सवर्धन का निर्णय लिया गया है लगभग 5000 कृषक परिवरों के बीच रागी के बीज वितरित किये गये एवं उन्हें तीन स्तरों पर प्रशिक्षित किया गया। परिणाम स्वरूप पिछले 5 वर्षों में सबसे अधिक (270%) रागी का उत्पादन सभव हुआ रागी की इस उपज की मार्केटिंग के लिए JSLPS की सखी मंडल दीदी समूह को प्रशिक्षण दिया एवं उपायुक्त द्वारा जरूरी उपकरण यंत्र एवं स्थल उपलब्ध कराया गया। अब सखी मंडल की दीदीयां विगित रागी आटा / लड्डु एवं रागी से निर्मित अन्य खाद्य पर्दाथ तैयार किये जा रहें हैं। दीदी मंडल द्वारा तैयार किये गये रागी लड्डओ को कुपोषित बच्चों / एनिमिक महिलाओं के बीच विवरण प्रारम्भ कर दिया गया है। जिन्हें प्रशिक्षित ANM / सेविका / सहिया की निगरानी में लड्डुओं को खिलाया जा रहा है।

जिले में कुपोषण एवं एनिमिया के स्तर में आई सुधार : जिले में कुपोषण के पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले चक्र को तोड़ने में मदद हेतु केन्द्र एवं राज्य की ओर से अनेक योजनाएं संचालित है। विशेषकर ICDS सेवाएं NRHM कार्यक्रम, पोषण अभियान एनिमिया मुक्त भारत, खाद्य पदार्थों में अति० पोषक तत्व (फॉटिफिकेशन) की उपलब्धता, स्वच्छता अभियान शुद्ध पेयजल की उपलब्धता शामिल है। जिसके परिणाम स्वरूप जिले में कुपोषण एवं एनिमिया के स्तर में सुधार के सकारत्मक परिणाम सामने आये है।

NFHS-5 के आंकड़े बताते हैं कि NFHS-4 के आकड़ों की तुलना में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के कुपोषण स्तर में 8.4% स्टटिंग (ठिगनापन) की दर में 6% एवं बेस्टिंग (उचाई के अनुसार वजन) दर में 7% की गिरावट दर्ज की गई है। परन्तु कुपोषण मुक्त गुमला की मंजिल तक पहुँचने के लिए अभी भी सम्भावनाओं के अनेक द्वार खुले हैं और अभी भी कई कदम उठाये जाने शेष हैं।

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