रणधीर निधि
- पूर्व में कार्य पूरा होने के बाद पानी के एक बहाव में हो गया था बर्बाद, अब विभगीय तलवार लटकता देख इंजिनियर लीपापोती कर कार्य पूरा करने में जुटे
- क्षेत्र के ग्रामीण योजना निर्माण कार्य की जिला प्रशासन से जांच की कर रहे मांग, दूबारा बने उप कटप का भाग भी हुआ क्षतिग्रस्त
गुमला : गुमला जिला के पालकोट प्रखंड किसानों की आस थी कि चेक डेम बनने से खेती अच्छी तरीक़े को सोच बनायीं थी लेकिन विभागीय और ठीकेदार की भ्रष्टाचार में घटिया निर्माण किया और एक ही बरसात में बह गया और किसानों की याद धरी की धरी रह गई लगभग डेढ़ करोड़ की लागत से चेक डैम ठेकेदार और विभाग की कमीशन खोरी से भ्रष्टाचार पर चढ़ी भेंट।
मामला पालकोट प्रखंड के टेंगरिया नावाडीह पिंजरा नाला में लघु सिंचाई विभाग गुमला के द्वारा बीयर योजना के तहत 1 करोड़ 30 लाख के लागत से बना चेकडैम बह जाने के बाद पूरी तरह बर्बाद हो गया था। अब विभाग के द्वारा फिर से योजना के कार्य में लीपापोती किया जा रहा है। पूर्व में पूरे डेढ़ करोड़ की राशि की निकासी कर ली गई थी। जब योजना का कार्य पूरी तरह भ्रष्टाचार का भेट चढ़ गया तो विभाग के इंजिनियर विभागीय कार्रवाई से बचने के लिए फिर से कार्य को पूरा करने के लिए लीपापोती कर रहे हैं। कार्य में मशाले का ऐसा प्रयोग किया जा रहा है कि एक बरसात भी योजना नहीं टिक पाएगी।
बीयर योजना के तहत चल रहे इस कार्य में आखिर छोर पर पानी के ठहराव के लिए सिमेंट व चिप्स का प्रयोग कर गार्डवाल निर्माण किया जा रहा है। अब दो ही दिन बनने को हुआ है एक ओर का गार्डवाल लगभग बैठ गया। इससे साफ जाहिर होता है कि इंजिनियर अपनी देखरेख में भी योजनाओं का कार्य कैसे कराते हैं। इस योजना के माध्यम से क्षेत्र का लगभग दौ सौ एकड़ भूमि को सिंचित करना था। ताकि क्षेत्र के ग्रामीण किसान योजना का लाभ उठाते हुए कम से कम दो फसलीय खेती कर अपने आय में वृद्धि कर पायें।
लेकिन योजना का धरातलीय कार्य देखने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि केवल यह खाओ पकाओं योजना ही बनकर रह गई है। क्योंकि बीयर योजना का कार्य प्रारंभ होने से क्षेत्र के किसानों में काफी प्रसन्नता थी लेकिन योजना का हर्ष देखकर किसान अब मायूस हो उठे हैं और क्षेत्र के किसानों का कहना है कि भविष्य में भी इस योजना का लाभ किसानों को नहीं मिलेगा। योजना का कार्य स्थल का चयन ही गलत तरीके से किया गया है। क्योंकि जिस स्थान पर जल को रोकना है उसके उपरी हिस्सा काफी पानी के लेबल से काफी उपर है। जिसे केवल मशीन होने पर ही सिंचाई की जा सकती है अन्यथा योजना का लाभ किसी कीमत पर किसानों को नहीं मिलता दिखलाई पड़ रहा है।
जब इस मामले पर कार्यपालक अभियंता से जानकारी लेना चाहे तो बताए की ईईI योजना का वित्तीय वर्ष 2016-17 का है जो 2022 में पूरा होने के बाद पानी में बहकर बर्बाद हो गया। योजना के तहत 105 मीटर बीयर बनाना था। जिसमें लगभग 80 मीटर बनने के साथ ही टूट गया। जिसकी मरम्मत ही किया जा रहा है लेकिन कार्यपालक अभियंता ने बताया कि जो भी गड़बड़ी है उसे बना लिया जाएगा इसे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि विभागीय लापरवाही और ठेकेदार की कमीशन खोरी के कारण यह चेक डैम भ्रष्टाचार का भेद चढ़ी है।
बाहर हाल जो भी हो जिस तरह से विभाग द्वारा कमीशन खोरी की जाती है ठेकेदार मजबूर होकर घटिया निर्माण करते हैं और बीयर के बेड का ढलाई मात्र 4 इंच किया गया था जबकि अप कटप बना ही नहीं था। अब अपने उपर विभगीय तलवार लटकता देख योजना को विभाग के इंजिनियर किसी तरह लीपापोती कर पूरा करने में जुट गये हैं। योजना का सिरे से जांच किया जाए तो पूरे कार्य में घोटाला के सिवाय कुछ दिखलाय नहीं पड़ रहा है। सरकार योजनाएं तो किसानों के हित में बनाती है लेकिन विभाग के इंजिनियर व संवेदक उसे पॉकेट का योजना बनाकर सरकार के मनसूबे में पानी फेर देती है। लघु सिंचाई विभाग के कई योजनाओं की धरातल स्थति इसे भी बदत्तर है। जिसपर एक जांच कमेटी गठित कर कार्रवाई करने की जरूरत है। सरकार की राशि का इसी तरह दुरूपयोग होता रहा तो एक दिन ऐसा आएगा कि जमीन पर कोई भी योजना सफल साबित नहीं होगा और विभाग के इंजिनियर व ठेकेदार मालामाल होते रहेंगे। सरकार को जरूरत है ऐसे अधिकारी पर लगाम लगाने की जरूरत है।