काराकाट लोकसभा क्षेत्र : पवन के झोंके से हिल रही उपेन्द्र कुशवाहा की जड़ें

धर्मेंद्र कुमार

काराकाट लोकसभा सीट : रोहतास और औरंगाबाद जिलों में बंटा हुआ है। मतदाता 17 लाख के करीब। इस बार यहां का चुनाव काफी रोचक हो चुका है। क्योंकि गर्मी की तपीश में पवन सिंह के झोंके की रफ्तार है। मगर हवा किस तरफ है? ये पता लगा पाना अभी मुश्किल है। राजनीतिक गहमा-गहमी बढ़ी हुई है। मोदी मैजिक के भरोसे चुनाव लड़ रहे उपेन्द्र कुशवाहा और तेजश्वी के जॉब शो के दावे पर सवार राजाराम सिंह के सामने चुनौतियों का पहाड़ है। और पवन नामक पहाड़ को दोनों उम्मीदवार अपने ज़ोरदार जनसंपर्क से नापने में जुटे हुए हैं। लेकिन पवन का झोंका यदि किसी की जड़ को ज्यादा हिला रहा है, तो वो उपेन्द्र कुशवाहा हैं। उपेन्द्र कुशवाहा पूर्व केंद्रीय मंत्री।

2014 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार थे और एक लाख से ज्यादा वोटों से जीते थे। 2019 में पाला बदल कर महागठबंधन की तरफ आ गए, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया और करीब 77 हजार वोट से चुनाव हार गए। इस बार फिर मोदी का नाम जप रहे। लेकिन भोजपुरी स्टार पवन सिंह के इस सीट पर चुनावी समर में उतरने के बाद परिदृश्य ही बदल गया है। पवन सिंह चिलचिलाती धूप में सुदूर ग्रामीण अंचलों का दौरा कर रहे हैं। हर तरफ भोजपुरी फिल्मी स्टार की धमक सुनाई दे रही है। अपने चहेते सिंगर के साथ सेल्फी लेने के लिए युवा उतावले दिख रहे हैं। साथ ही पवन सिंह को लेकर उनके स्वजातीय में भी उत्साह दिख रहा। यही स्वजातीय उत्साह उपेन्द्र कुशवाहा को परेशान कर रहा है। एक तरफ उपेन्द्र कुशवाहा जितने परेशान दिख रहे हैं, तो दूसरी तरफ महागठबंधन के उम्मीदवार राजाराम सिंह (कुशवाहा) उतने ही उत्साहित हैं। उपेन्द्र कुशवाहा से जितने राजपूत वोटर्स दूर जाएंगे, उतनी ही राजाराम सिंह की जीत की संभावना बढ़ती जाएगी। क्योंकि यहां की जीत और हार के बीच उतना ही अंतर है, जितना राजपूत वोटर्स मतदान करते हैं।

दरिहट पंचायत निवासी और भारतीय जनता पार्टी से गहरा जुड़ाव रखनेवाले नरेश सिंह कहते हैं : पवन सिंह तेजी से मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की तरफ बढ़ रहे हैं, लेकिन उनकी जीत होगी यह सम्भव नहीं दिख रहा। यह हो सकता है कि उनकी वजह से उपेन्द्र कुशवाहा को चुनाव में मात मिल जाये और तेजस्वी का घोड़ा बाजी मार ले। उपेन्द्र कुशवाहा की जीत के लिए एनडीए की टॉप लीडरशिप को अपनी पूरी ताकत लगानी होगी। कुशवाहा जी के साथ लाभार्थी वर्ग तो रहेगा ही।

भाजपा के एक और कार्यकर्ता संजय गुप्ता कहते हैं : पवन सिंह के पीछे ऐसे युवाओं की भीड़ दिख रही है जिनमें अधिकतर का नाम मतदाता सूची में ही नहीं है। और जहां तक राजपूत मतदाताओं की बात है तो उनका पूरा वोट पवन सिंह को नहीं मिलने जा रहा।

वही औरंगाबाद जिला के ओबरा विधानसभा के राजू महतो का कहना है कि मगह क्षेत्र में महागठबंधन के राजाराम सिंह और निर्दलीय पवन सिंह में ही टक्कर दिख रही है। उपेन्द्र कुशवाहा अभी लड़ाई से बाहर दिख रहे हैं। वह इसका एक दिलचस्प कारण बता रहे हैं। उनका कहना है कि काराकाट लोकसभा सीट से सटे औरंगाबाद सीट पर हुए चुनाव में कुशवाहा समाज के अधिकतर लोगों ने एनडीए प्रत्याशी सुशील कुमार सिंह की जगह महागठबंधन के अभय कुशवाहा के पक्ष में वोट किया है। इस कारण भी राजपूत समाज में उपेन्द्र कुशवाहा को लेकर नाराजगी दिख रही है। दूसरी तरफ पवन सिंह को स्वजातीय के साथ-साथ कुछ दूसरी छोटी-छोटी जातियों का सपोर्ट मिलता दिख रहा है।

इधर राजद समर्थक विक्की यादव का भी मानना है कि लड़ाई पवन सिंह और राजाराम सिंह के बीच ही दिख रही है। क्योंकि उपेन्द्र कुशवाहा के स्वजातीय भी कहीं-कहीं उनका विरोध कर रहे हैं। हालांकि भाजपा समर्थक अंकित प्रियदर्शी का कहना है कि उपेन्द्र कुशवाहा लड़ाई में हैं। पवन सिंह के पीछे सिर्फ सेल्फ़ी लेनेवालों की भीड़ है।

ये लेखक के निजी विचार हैं।

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