प्रसिद्ध गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने हाल ही में सेंसरशिप नीति पर अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि अश्लीलता से भरपूर फिल्में आसानी से पास हो जाती हैं, जबकि समाज की वास्तविकता को दर्शाने वाली फिल्में सेंसर बोर्ड की कठिनाइयों का सामना करती हैं। अख्तर के अनुसार, यह प्रवृत्ति समाज में पुरुषवादी मानसिकता और असंवेदनशीलता को बढ़ावा देती है।
अख्तर ने अनंतरंग मानसिक स्वास्थ्य सांस्कृतिक महोत्सव में कहा कि फिल्में समाज की खिड़की होती हैं, लेकिन जब इन खिड़कियों को बंद कर दिया जाता है, तो समाज की समस्याएँ जस की तस रहती हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि हाइपर-मास्कुलिनिटी को बढ़ावा देने वाली फिल्मों की सफलता दर्शकों की मानसिकता पर निर्भर करती है।
अख्तर ने यह भी कहा कि यदि पुरुषों की मानसिक स्थिति में सुधार हो, तो ऐसी फिल्में नहीं बनेंगी, और यदि बनेंगी भी, तो सफल नहीं होंगी। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि यह दर्शक ही हैं जो बुरी फिल्मों को सफल बनाते हैं।
अख्तर की ये टिप्पणियाँ फिल्म इंडस्ट्री में सेंसरशिप और समाज में फिल्मों के प्रभाव पर चल रही बहस को और तेज़ कर सकती हैं।