गुमला : आजादी के 76 साल बाद भी विकास की बाट जो रहा चैनपुर का कच्चा पाठ गांव

बिरसा भूमि लाइव/ राहुल कुमार

  • 76 साल बीत गये, विकास की धुंधली किरण भी नहीं पहुंची
  • गांव की दूरी मुख्यालय से महज 20 किलोमीटर
  • बीमार पड़ने पर मरीज व गर्भवती महिलाओं को कंधे पर ढोह कर ले जाना पड़ता है
  • 7 किलोमीटर दूर सड़क तक लाने के बाद इलाज के लिए ले जाया जाता है
  • सड़क बिजली पानी जैसे मूलभूत सुविधाओं को तरस रहा है गांववासी

चैनपुर : देश में एक तरफ हाइटेक सिटी मॉडल सिटी बनाई जा रही है तमाम सुख सुविधाओं से लैस शहर बनाए जा रहे हैं। चारों ओर सड़कों की जाल बिछाई जा रहा है। वहीं आज भी जिले के कई गांव ऐसे हैं जहां के लोग समस्याओं से जकड़े हुए हैं। यहां सड़क-पानी-बिजली जैसी मूलभूत सुविधा तक नहीं पहुंच सकी हैं। ऐसा ही एक गांव चैनपुर प्रखंड मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर जंगल पहाड़ों पर बसा कच्चा पाठ है। पहाड़ी पर बसे इस गांव के लोग विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर हैं। मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर मालम पंचायत के कच्चा पाठ गांव के लोग वर्षों से समस्याओं से जूझ रहे हैं। इन्हें सुलभ जीवनयापन के लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं हैं। उन्हें मताधिकार तो मिला है लेकिन इसका फायदा चुनाव लड़ने वालों तक सीमित है।

गांव में जल मीनार तो बनाया गया है मगर शो पीस के लिए

चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि से लेकर विधायक-सांसदों को इस गांव की बेहतरी के लिए समय नहीं मिला। ये हालात यकायक नहीं बने, बल्कि आजादी के बाद से ही उपेक्षा का दंश इस गांव के लोग भोगते आ रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार 40 घरों में 250 की आबादी वाले इस गांव में पेयजल की भी भारी समस्या है, गांव में जल मीनार तो बनाया गया है मगर वह अभी खराब होकर शोपीस बना हुआ है। वार्ड सदस्य गणपत साय कंवर ने बताया कि संवेदक द्वारा जल मीनार को जबरन गलत जगह में लगाने के कारण जल मीनार का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है। ग्रामीणों के द्वारा विरोध करने के बावजूद संवेदक ने गलत जगह पर जल मीनार का निर्माण कर दिया। गांव में दो कुआं है जिससे पूरा गांव पानी पीकर अपना प्यास बुझाता है।

बीमार स्वजन को चारपाई पर लेटाकर ले जातें है इलाज के लिए

ग्रामीण बंधन असुर ने बताया कि गांव को मुख्यालय से जोड़ने के लिए आज तक सड़क नहीं बना है आज भी गांव के लोग पगडंडियों व उबड़ खाबड़ रास्तो के सहारे मुख्यालय तक पहुंचाते हैं। बरसात के दिनों में यह गांव पूरी तरह से टापू बन जाता है। सड़क की दुर्दशा तो ऐसी है के गांव में चार चक्का वाहन भी नहीं पहुंच पाती है। यदि किसी घर में कोई बीमार मरीज हो या गर्भवती महिला हो तो यहां पर एंबुलेंस आदि का आना नामुमकिन है। ग्रामीण ही अपने बीमार स्वजन को चारपाई पर लेटाकर उसे कांधे पर रखकर 7 किलोमीटर दूर जामटोली तक ले जाते हैं जहां से वाहन में बैठा कर इलाज के लिए चैनपुर या गुमला ले जाया जाता है। गांव की समस्याओं के बारे में बात करने पर ग्रामीणों का आक्रोश भी सामने आ जाता है। उनके अनुसार देश की आजादी को भले ही 76 साल से अधिक का वक्त हो गया हो लेकिन उन्हें इसका कोई फायदा नहीं मिला है। वे आज भी समस्यारूपी गुलामी में जीने को विवश हैं। उनका कहना है कि सरकार द्वारा दर्जनों योजनाएं चलाई जा रहीं हैं। विकास के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन इसका कोई लाभ कच्चा पाठ गांव के लोगों को नहीं मिला है।

आज भी इस गांव के लोग खुले में जाते हैं शौच, बिजली भी मयस्सर नहीं

सरकारी योजना के नाम पर पूरे गांव में मात्र 7 शौचालय का निर्माण हुआ है। आज भी इस गांव के लोग खुले में ही शौच जाते हैं। गांव में 6 लोगों को अबुवा आवास मिला हैं। लोगों का कहना है कि अबुवा आवास के निर्माण के लिए सड़क नहीं होने कारण सामग्री लाने में भी काफी कठिनाई होगी। गांव में बिजली का खंभा व तार तो पहुंच चुका है मगर पिछले कई सालों से बिजली का दर्शन भी नहीं है।

ग्रामीण लाकड़ असुर व कृष्णा कवर ने कहा कि बिजली का खंभा व तार सिर्फ शो के लिए है गांव में पिछले कई सालों से बिजली का दर्शन नहीं है उन लोगों ने बताया कि ट्रांसफार्मर खराब होने के बाद किसी जनप्रतिनिधि वह विभागीय लोगों ने यहां ट्रांसफार्मर लगाना जरूरी नहीं समझा। अधिकारियों कर्मचारियों व नेताओं को लगता होगा कि जंगल पहाड़ों में रहने वाले लोगों को बिजली की क्या आवश्यकता है हमारे बच्चे आज भी ढिबरी की रोशनी में पढ़ाई करते हैं। हमें मोबाइल चार्ज करने में भी काफी परेशानी झेलनी पड़ती है। कई बार ट्रांसफार्मर लगाने के मांग करने के बावजूद भी किसी ने हमारी बातों को नहीं सुना।

आदिम जनजाति बहुल इस गांव है करीब 40 परिवार में 250 लोग रहते हैं

यह गांव आदिम जनजाति बहुल गांव है यहां करीब 40 परिवार में 250 लोग बसे हैं। जिनका व्यवसाय खेती करना व मवेशियों का पालन-पोषण, दोना पत्तल बेचना। रोजगार की कमी के कारण गाँव के अधिकांश युवा पलायन कर बड़े शहरों में काम करते हैं। सड़क नहीं होने के कारण ग्रामीणों को खेतों की पगडंडी, उबड़खाबड़ रास्तों से दूसरे गांव आना-जाना पड़ता है। ग्रामीणों के साथ-साथ यहां के मवेशियों के सामने भी जलसंकट की स्थिति है। ग्रामीण गुलेश्वरी देवी, सिमा देवी सहित सभी महिलाओं ने बताया कि यहां गर्भवती महिलाओं से लेकर किसी घर में कोई बीमार पड़ जाए तो उसकी खैरियत का सहारा सिर्फ ईश्वरीय प्रार्थना है। गांव के लोगों ने जिला प्रशासन से इस गांव में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की मांग की है।

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