बिरसा भूमि लाइव
रांची : बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू), रांची एवं पौधा किस्म संरक्षण एवं कृषक अधिकार प्राधिकरण (पीपीवी एंड एफआरए), नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय जागरूकता अभियान-सह-प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन सोमवार को होगा। बीएयू परिसर स्थित कृषि प्रेक्षागृह में प्रातः 10।30 बजे से आयोजित इस कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह की मुख्य अतिथि जेपीएससी अध्यक्ष डॉ मैरी नीलिमा केरकेट्टा होंगी। इसके विशिष्ठ अतिथि झारखंड सरकार के अपर मुख्य वन संरक्षक डॉ डीके सक्सेना एवं बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के पूर्व कुलपति डॉ एके सिंह होंगे। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता पीपीवी एंड एफआरए के अध्यक्ष एवं पूर्व आईसीएआर महानिदेशक डॉ। त्रिलोचन महापात्रा करेंगे।
कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह की पहल पर प्रदेश में पहली बार पौधा किस्म संरक्षण एवं कृषक अधिकार अधिनियम, 2001 विषय पर जागरूकता अभियान-सह-प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है। कुलपति ने प्रदेश के किसानों के बौद्धिक संपदा अधिकारों की रक्षा के लिए जरुरी बताया है।
बीएयू के निदेशक बीज एवं प्रक्षेत्र डॉ एस कर्माकार ने बताया कि इस कार्यक्रम में राज्य के विभिन्न जिलों के किसान एवं कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिकों के अलावा बीएयू के पौधा प्रजनक एवं कृषि विशेषज्ञ भाग लेंगे। कार्यक्रम के दो तकनीकी सत्रों में पौधा किस्म संरक्षण एवं कृषक अधिकार अधिनियम, 2001 विषय पर पीपीवी एंड एफआरए के अधिकारी यूके दुबे द्वारा किसानों एवं केवीके वैज्ञानिकों को अवगत कराया जायेगा।
इन सत्रों की अध्यक्षता पीपीवी एंड एफआरए के अध्यक्ष डॉ. त्रिलोचन महापात्रा तथा सह-अध्यक्षता बीएयू कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह करेंगे। केवीके वैज्ञानिकों के पहले तकनीकी सत्र के संयोजक ओएसडी, आईसीएआर–आईएआरआई डॉ विशाल नाथ पांडे एवं निदेशक बीज एवं प्रक्षेत्र डॉ एस कर्माकार होंगे। जबकि किसानों के दुसरे तकनीकी सत्र के संयोजक आईसीएआर–आईआईएबी, रांची के निदेशक डॉ सुजय रक्षित एवं आईसीएआर–आरसी, पलांडू के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रधान डॉ एके सिंह होंगे।
डॉ कर्माकार ने बताया कि प्रदेश के किसान के यहां स्थानीय तौर पर उपलब्ध बीज में बहुत सारे अच्छे गुण मौजूद है। कृषक किस्में स्थानीय रूप से अनुकूलित होती है और उनमें रोग/सुखा/लवण अवरोधी एवं औषधिय सबंधी विशेष गुण होते है। इन कृषक किस्मों का प्रजनन हेतु अनुवांशिक संसाधन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। पौधा किस्मों, कृषकों व पादप प्रजनकों के अधिकारों की रक्षा तथा पौधों की नई किस्मों के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए पुरे देश में पीपीवी एंड एफआर अधिनियम, 2001 लागु किया गया।
यह अधिनियम स्थानीय कृषकों के पौधा किस्मों के उपलब्ध पादप संसाधनों को मान्यता एवं कृषकों के अधिकारों की रक्षा और कृषक किस्मों को बौद्धिक संपदा सुरक्षा प्रदान करता है। जो राज्य अधिकार क्षेत्र के पारंपरिक किस्मों की जैव-चोरी को रोकने में कारगर साबित हो सकती है। इस प्रयास से राज्य में बीज उद्योग के विकास में सुविधा होगी, जिससे कृषकों को उच्च गुणवत्तापूर्ण बीज व रोपण सामग्री की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
बताते चले कि पीपीवी एंड एफआरए को झारखंड राज्य से विभिन्न किस्मों के 2722 आवेदन मिले है। प्राधिकरण ने इन आवेदन के परीक्षण के उपरांत कुल 90 कृषकों के किस्मों का पंजीकरण/निबंधन प्रमाण-पत्र निर्गत किया है। प्राधिकरण द्वारा वर्ष 2015 में राज्य के 5 केवीके को स्थानीय फसल सुरक्षा में विशेष योगदान के लिए पीपीवी एंड एफआरए अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
केवीके, लोहरदगा के प्रयास एवं बीएयू निदेशक अनुसंधान कि अनुशंसा पर लोहरदगा के किसान बंधना उरांव को स्थानीय किस्मों के संरक्षण में राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट योगदान के लिए पीपीवी एंड एफआरए द्वारा पादप जीनोम संरक्षक कृषक सम्मान- 2021 एवं डेढ़ लाख नगद पुरुस्कार भी मिल चूका है।